एक सर्वे के अनुसार देश में जौ की खेती का रकबा लगभग सात लाख हेक्टेयर है.
इससे प्रतिवर्ष देश में 15 लाख टन जौ का उत्पादन होता है
जौ की खेती के लिए वैज्ञानिक विधि खरीफ के बाद खेत की तैयारी: जौ की खेती दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है
खरीफ कटाई के बाद किसान खेत की 2-3 बार हैरो से सीधी-उल्टी जोताई कर दें
बुवाई का समय और बीजोपचार: कृषि विशेषज्ञ जौ की बुवाई के लिए नवंबर का महीना सबसे अच्छा मानते हैं.
बुवाई की सही विधि: बीजोपचार के बाद किसान एक एकड़ खेत में जौ की बुवाई के लिए 30-40 किलोग्राम बीज का प्रयोग करें.
सिंचाई वाले क्षेत्रों में बीज को 3-5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं, बारिश प्रभावित क्षेत्रों में बीज 5-8 सेंटीमीटर की गहराई में बोएं.
खरपतवार और कीट प्रबंधन: चौड़ी पत्ती वाली खरपतवार, झुलसा रोग और दीमक से जौ की फसल प्रभावित होती है
सिंचाईः जौ की फसल से अच्छी उपज के लिए 3-4 सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई बुवाई के समय 20-25 दिनों के बाद लगाएं.
जौं उन्नत किस्में: बीज की प्रमुख किस्मों में ज्योति/0572-10, आजाद, मंजुला, रेखा/बीएसयू-73, लखन/के-226, गीतांजली/के-1149 नरेंद्र-1,2 और 3 हरीतिमा प्रीति/के-409 वैज्ञानिक बेस्ट मानते हैं.
जौं की उन्नत किस्में: बीज की प्रमुख किस्मों में ज्योति/0572-10, आजाद, मंजुला, रेखा/बीएसयू-73, लखन/के-226, गीतांजली/के-1149 नरेंद्र-1,2 और 3 हरीतिमा प्रीति/के-409 वैज्ञानिक बेस्ट मानते