Betul : त्योहार हमेशा खुशियों की सौगात लेकर आते हैं। त्योहार ही है जो हमें आनंदित करते है ..हम में एक-दूसरे से मिलने-जुलने और मौज मस्ती का जज्बा पैदा करते हैं।
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लेकिन क्या कभी त्यौहार भी खौफ पैदा कर सकते हैं। वो भी मौत का खौफ ..इस सवाल पर आपका जवाब भले ही न हो लेकिन ये हकीकत है ।
त्यौहार भी मौत का खौफ पैदा कर सकते हैं। मौत का खौफ एक गाँव पर साए की तरह मंडराता है ..वो भी हर रोज नहीं बल्कि तीज त्योहारों पर जब लोग खुशिया मनाने के जतन में जुटे रहते है ।.बैतूल से सत्तर किलोमीटर दूर बसा बरेलीपार आदिवासी गाँव है।
यहां हर तीज त्यौहार पर मौत का खौफ मंडराता है। गांव में होली हो या की दिवाली ..जन्मष्टमी हो या बैलो को सिंगारने का त्यौहार पोला ..कोई भी त्यौहार यहाँ उस दिन नहीं होता जब पूरा देश त्यौहार मना रहा होता है ।
गाँव में पिछले पचास साल से कोई भी त्यौहार उसकी नियत तिथि पर नहीं मनाया जाता । होली हो या दिवाली या फिर जन्माष्टमी हर त्यौहार यहाँ तिथि से पहले मना लिया जाता है ।
तीन सौ परिवारों की बस्ती बरेलिपार में मान्यता है की त्यौहार के दिन यदि त्यौहार मना लिया तो किसी न किसी की मौत हो जाएगी या फिर और कोई अनिष्ट हो जायेगा । इसी अनिष्ट को टालने ग्रामीण नियत तारीख पर त्यौहार नहीं मनाते।
ग्रामीण सिंगुलाल बताते है कि मौत का यह खौफ बीते 50 साल से यू ही बना हुआ है। यही वजह है कि 17 मार्च को मनाई जाने वाली होली उन्होंने 15 मार्च की रात जला दी और आज बुधवार वे धुरेड़ी खेल रहे ही। भारतीय संस्कृति और परंपरा में हर उदूली नाफरमानी नही करना चाहते।