Betul News: दुर्लभ कारीगरी, बेजोड़ नक्काशी और ऐतिहासिक महत्व की 11 सौ साल पुरानी धरोहर बैतूल में धूल खा रही है। यहां नेहरू पार्क में बनाए गए पुरातत्व संग्रहालय का पिछले 18 सालों से ताला नहीं खुला है। जिसके चलते बेशकीमती विरासत धूल धूसरित हो रही है।
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आलम यह है कि बेशकीमती, दुर्लभ, बेजोड़ कारीगरी के नमूने यहां कूड़ेदान में फेंक दिए। 10 से 13वीं सदी की नायब मूर्तियां, महल मंदिरों के अवशेष यहां प्रशासनिक और राजनैतिक उपेक्षा का शिकार होकर तालो में बंद किए हैं।
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बैतूल के समृद्ध इतिहास की तस्वीर को रूबरू कराने वाली विरासत के क्या हालात है। इसकी झलक बैतूल के नेहरू पार्क में एक कमरे में बंद इन मूर्तियों से पाई जा सकती है।
बरसो से इस कमरे का ताला नही खोला गया जिसके चलते यहां रखे मंदिरों के भग्नावशेष,प्रतिमाएं अब धीरे धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रही है।
आदिवासी बाहुल्य जिला होने के बावजूद एक हजार साल पुरानी प्रतिमाएं, आदिवासी कला संस्कृति के नमूने कभी यहां आने वाले दर्शकों के देखने के लिए उपलब्ध थे।
लेकिन बीते 10 से 12 सालो से इसे उपेक्षित कर दिया। इतिहासकारों के मुताबिक यहा रखी बेशकीमती धरोहर ,प्रतिमाएं या तो चोरी कर ली गयी या उन्हें बेपरवाही से छोड़ दिया गया।
जबकि चौकीदार बताते है कि वर्षो से यहां का ताला नही खुला। भवन की छत टूट गयी है। बिल्डिंग मलबे में तब्दील हो रही है।
Betul News: किसी का नहीं ध्यान
संग्रहालय के अध्यक्ष कलेक्टर होते है लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। बैतूल में आदिवासी सांसद से लेकर विधायक और जिला पंचायत अध्यक्ष से लेकर जनपदों में इस वर्ग का प्रतिनिधित्व होने के बावजूद आदिवासी कला और संस्कृति, पुरातत्व की धरोहर धूल खा रही है।
34 साल पहले हुआ था उद्घाटन
जिला पुरातत्व एवं आदिवासी संस्कृति संग्रहालय का उद्घाटन 26 जनवरी 1986 को तत्कालीन संसदीय सचिव ने किया था। इस दौरान कार्यक्रम की अध्यक्षता तत्कालीन विधायक अशोक साबले ने की थी।
संग्रहालय के शुरू होने के बाद यह कई वर्षों तक दर्शकों के लिए खोला था। लेकिन फिर इसे भुला दिया गया।
इस संबंध में बैतूल सीएमओ अक्षत बुंदेला का कहना है कि संग्रहालय को लेकर सामग्री की लिस्टिंग की जा रही है। इसे ट्राइबल विभाग से हैंडओवर लेकर दोबारा व्यवस्थित करने के प्रयास किये जाएंगे।