Para Cyclist: देश की पहली महिला पैरा साइकिलिस्ट की कहानी:एक्सीडेंट में पैर गंवाया, पर हारीं नहीं

Para Cyclist मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के ब्यावरा की रहने वाली 25 साल की तान्या डागा। कार एक्सीडेंट में एक पैर गंवा दिया। सर्जरी में 3000 टांके लगे थे। पैर गंवाने के बाद जान बच गई, लेकिन तान्या को लगा कि उसका सबकुछ छिन गया। इस बीच वह आदित्य मेहता फाउंडेशन से जुड़ी। यही उसकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था।

उसने एक पैर से साइकिलिंग Para Cyclist शुरू की और 3800 किमी साइकिल चलाकर कीर्तिमान स्थापित किया। 43 दिन में उसने जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर किया। तान्या ने 19 नवंबर को यात्रा शुरू की थी ओर 31 दिसंबर 2020 को इसका समापन हुआ था। ऐसा कर तान्या देश की पहली महिला पैरा साइकिलिस्ट बन गई। महिला दिवस के मौके पर हम आपको बता रहे हैं तान्या के संघर्ष की कहानी… उसी की जुबानी

मैं 2018 में एमबीए की पढ़ाई के लिए देहरादून गई थी। यहां कार हादसे में मेरा एक पैर कट गया। परिवार मुझे देहरादून से इलाज के लिए इंदौर ले आए। यहां मेरी दो सर्जरी हुई, लेकिन मेरे जिंदा रहने की गारंटी कोई नहीं दे रहा था। मेरा परिवार परेशान हो रहा था। मुझे बेहतर इलाज के लिए दिल्ली ले जाया गया।

यहां 6 महीने मेरा इलाज चला। हर सर्जरी पर 3000 टांके लगते थे। पैर गंवाने के बाद मेरी जान तो बच गई, लेकिन मुझे लगा कि मेरा सबकुछ छिन गया है। इसी बीच मैं आदित्य मेहता फाउंडेशन से जुड़ी। वह मेरी जिंदगी में बदलाव लाने वाला पल था। मैंने एक पैर से साइकिलिंग शुरू की।

मेरे लिए यह सब बहुत मुश्किल था। साइकिल चलाने के दौरान एक पैर से कई बार खून आने लगता था। मैंने दर्द तो सहा, लेकिन साइकिल चलाना नहीं छोड़ा। सबसे पहले मैंने 100 किमी साइकिल रेस में हिस्सा लिया। इसमें मैं टॉप -10 में आई।

नवंबर 2020 में बीएसएफ द्वारा कश्मीर से कन्याकुमारी तक इन्फिनिटी राइट साइकिलिंग का आयोजन किया गया। इसमें 30 साइकिलिस्ट में से 9 पैरा साइकिलिस्ट Para Cyclist थे। इसमें से एक मैं भी थी। मैंने इस रेस को पूरा किया। इसके लिए मुझे बीएसएफ ने सम्मानित किया।

पिता की मौत के बाद भी जारी रही यात्रा Para Cyclist


मैंने 19 नवंबर 2020 से यात्रा शुरू की थी, जो 31 दिसंबर 2020 को पूरी हुई। मैंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक 3800 किमी की दूरी तय की। यात्रा के दौरान जब मैं बेंगलूरु पहुंची तो 18 दिसंबर को खबर आई कि मेरे पिता आलोक डागा का निधन हो गया है। यह सुनकर मैं टूट गई। समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं करू तो क्या करूं।

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घरवालों और मेरे कोच ने मुझे समझाया कि राइड खत्म करनी चाहिए। 25 दिसंबर को मेरे कोच मुझे लेने आए। मैं उनके साथ रवाना हुई। इसके बाद मैंने फिर से साइकिल थामी और सफर को पूरा किया। जिस दिन मेरे पिता की तेरहवीं थी, उसी दिन राइड का आखिरी दिन भी था।

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