Papaya Farming: देश में व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण फसलों में से एक पपीता (Papaya) की फसल भी उगाई जाती है. इस फल में उच्च औषधीय और पोषण महत्व होने की वजह से ही इसका व्यावसायिक महत्व है.
आपको बता दें कि दुनिया में पपीते की खेती की शुरुआत दक्षिण मैक्सिको और कोस्टा रिका से हुई थी, लेकिन आज हमारा देश भारत दुनिया के कुल पपीते उत्पादन में सबसे आगे है. यही वजह है कि भारत को सबसे बड़ा पपीता उत्पादक देश कहा जाता है.
Papaya Farming
एक अनुमान के मुताबिक, भारत दुनिया का कुल पपीता उत्पादन में 46 प्रतिशत का योगदान देता है.हालांकि दिलचस्प बात ये है कि भारत अपने पपीता के घरेलू उत्पादन का मात्र 0.08% ही एक्सपोर्ट करता है, क्योंकि बाकी की खपत अपने देश में ही हो जाती है. देश के प्रमुख राज्यों में पपीता सालभर बाजार में मिलता है. तो चलिए इस लेख में जानते हैं कि कब और कैसे इसकी खेती कर आप लाखों कमा सकते हैं…
पपीते के बीज को कब लगाएं?(When to Cultivate Papaya)
यूं तो पपीता के फल को पूरे साल बोया जा सकता है, लेकिन इसकी गुणवत्तापूर्ण और ज्यादा पैदावार के लिए आपको जुलाई से लेकर सितंबर महीने और फरवरी-मार्च महीने के बीच इसके बीज को बोने का काम करना चाहिए, क्योंकि इसकी खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है. इस पर ठंड के मौसम में पाले का ज्यादा असर होता है. ऐसे में इसकी बीज गर्म जलवायु में ज्यादा अच्छे से लगती हैं.
पपीते के बीज को हमेशा ऐसे पपीते के पेड़ से लें, जो पहले से स्वस्थ हो और जिस पेड़ से अच्छे और मीठे पपीते निकलते हों.
इसकी खेती करते दौरान पाले, तेज हवाओं,खाद और पानी के ठहराव का काफी ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए गहरी, अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है.
ज्यादा गर्मियों के मौसम यानि जब मई-जून का महीना चलता है, तो पपीते के पेड़ों की हर सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए. इससे इसकी उत्पादन क्षमता ज्यादा होगी.
पपीते की खेती से कितनी होगी कमाई?( How much will you earn from papaya cultivation?)
अगर आपने सारी बातों का ध्यान रखकर और सावधानी बरतकर पपीते की खेती की है, तो जाहिर सी बात है कि हर पेड़ से उत्पादन अच्छा होगा. ऐसे में हर पेड़ से आप आसानी से 50 किलो तक पपीते के फल को प्राप्त कर सकते हैं.
जिसे आप बाजार में बेचकर आसानी से लाखों की कमाई कर सकते हैं. विटामिन-ए और विटामिन-सी से भरपूर पपीते की मांग हमेशा ही बाजारों में रहती है, बड़े शहरों में तो इसके दाम कभी-कभी सेब के दामों की तुलना भी करते हैं.