Gullak Season 3 Review: हिंदुस्तानी मिडिल क्लास की कहानियां छोटे परदे पर खूब हिट रही हैं।
‘हम लोग’ से लेकर ‘कहानी घर घर की’ तक में घर घर की कहानियों का स्वाद हिंदी भाषी दर्शकों ने खूब जायका जायका बदल बदलकर लिया है। ओटीटी आया तो इस स्वाद में भी बदलाव आया।
छत पर सूखती लाल मिर्च का तड़का लगा और कभी ‘पंचायत’ तो कभी ‘ये मेरी फैमिली’ और कभी ‘गुल्लक’ जैसी सीरीज में मिडिल क्लास की ये कहानियां ओटीटी पर भी खूब देखी गईं।
वैसे लोग इंतजार तो वेब सीरीज ‘पंचायत’ के दूसरे सीजन का बहुत बेसब्री से कर रहे हैं लेकिन सोनी लिव का जवाब नहीं। उसने पांच एपीसोड के साथ अपनी चर्चित वेब सीरीज ‘गुल्लक’ का तीसरा सीजन रिलीज कर दिया है।
कहानी इस बार थोड़ा व्यंग्य विनोद से आगे बढ़कर दिल तक पहुंची है। मामला भावुक हो चला है। अन्नू मिश्रा बड़े हो चुके हैं।
घर की जिम्मेदार भी अपने कंधों पर लेते दिखते हैं लेकिन सीरीज के इस सीजन का रंग चटख हुआ है उनके छोटे भैया अमन मिश्रा की कलाकारी से।
परेशानियां मिडिल क्लास की Gullak Season 3 Review
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वेब सीरीज ‘गुल्लक’ के तीसरे सीजन की कहानी शुरू होती है अन्नू मिश्रा की नौकरी मिलने से और मंदिर के बाहर उनकी पंचायत लगने से।
मिडिल क्लास में नई नई नौकरी लगने के बाद की जो ‘अय्याशियां’ करने की लड़के सोचते हैं, उनकी भी इच्छाएं उसी दिशा में उड़ान भर रही हैं।
लेकिन वह कहते हैं ना कि ‘हानि लाभ जीवन मरण, यश अपयश विधि हाथ’। तो तुलसी बाबा की इस लाइन को पकड़ कर दुर्गेश सिंह ने पांच एपीसोड इस सीरीज के लिख दिए हैं।
घर के मुखिया चिकन खाने वाले और दारू पीने वाले संतोष मिश्रा हैं। उनकी पत्नी शांति मिश्रा की परेशानियां पहले जैसी हैं। सत्यनारायण की कथा से उनको सारे विघ्न हटने का पूरा भरोसा है।
अमन मिश्रा परेशान हैं कि क्लॉस के टॉपर होने के बाद भी आगे की पढ़ाई उनको अपने मन से नहीं करने दी जा रही। दूर के रिश्तेदार बीच में अपनी बिटिया लेकर आ जाते हैं।
कहानी थोड़ी बहुत कभी कभी इधर उधर भटकती है लेकिन आखिर तक आते आते अन्नू मिश्रा के पैरों में अपने पिता की चप्पल आ ही जाती है।
खिलने में कामयाब रहे पलाश Gullak Season 3 Review
दुर्गेश सिंह की लिखी पटकथा और संवाद का दुरुस्तीकरण विदित त्रिपाठी से करवाया गया है। दोनों कलमवीरों ने मिलकर कहानी बढ़िया बोई है।
इस पर किस्सों की फसल उगाने वाले निर्देशक पलाश वासवानी की जीत यहां इस बात में है कि उन्होंने कहानी के सारे किरदारों की डोरियां अच्छे से थामे रखी हैं और उनको उतना ही ढील दी है जितने की जरूरत है।
कई बार तो लगता है कि पतंग कहीं सद्दी से न कट जाए लेकिन सीरीज के कलाकार मामला जमाए रखते हैं। लेखन और निर्देशन टीम ही इस सीरीज के असली नायक हैं।
भोपाल के एसटीडी कोड वाली मुस्कान ट्रैवेल्स को कभी उत्तर प्रदेश का हिस्सा रहे रुद्रपुर की बस बनाने जैसी पकड़ में आने वाली गलतियों पर पलाश ध्यान देते तो मामला और चौकस होता।
लेकिन सीरीज का अब तक बनता और जमता आ रहा रंग उन्होंने इस सीजन में भी सजाए रखा है, ये उनकी जीत है।
अन्नू मिश्रा का वैभव
कलाकारों में इस बार सीरीज अन्नू मिश्रा बने वैभव राज गुप्ता के नाम है। पहले एपीसोड से लेकर आखिरी एपीसोड तक वैभव ने अपनी अदाकारी के तमाम रंग दिखाए हैं।
इस बार सिर्फ वह मिडिल क्लास के आवारा लड़के नहीं है। अब घर के जिम्मेदार बड़े बेटे हैं और मां से लेकर पिता और छोटे भाई अमन की हर आस के हमेशा पास दिखते हैं।
सीरीज के आखिरी एपीसोड में घर के मुखिया के जीवन की डोर हाथ से छूटते देख उनके मन में उठने वाला आर्तनाद जो उनके चेहरे पर दिखता है तो देखने वाले की रुलाई बड़ी मुश्किल से रुकती है।
और, सीरीज में दूसरे नंबर का काम किया हर्ष मायर उर्फ अमन मिश्रा ने। रास्ते में मिलने वाली किसी बड़े स्कूल की छात्रा का उन पर रीझने वाला ट्रैक हो सकता है अगले सीजन में दिखे लेकिन हर्ष सीरीज में जितनी देर भी दिखे, दिल जीतते रहे।
याद रह गई फुर्तीली
वेब सीरीज ‘गुल्लक’ के तीसरे सीजन में जमील खान और गीतांजलि कुलकर्णी की जोड़ी सहायक भूमिकाओं में आ गई दिखती है। दोनों की नोंकझोंक जारी है।
घर गृहस्थी चलाने का संकट अब भी उन पर तारी है। जमील खान अपने किरदार संतोष मिश्रा में जितना फबते हैं, उससे ज्यादा घर की मालकिन शांति बनी गीतांजलि का रुतबा गालिब है।
पड़ोसन के किरदार मे सुनीता राजवर फिर अपना जादू चलाने में कामयाब रही हैं। सीजन के अलग अलग एपीसोड में वैसे तो तमाम कलाकार अपने किरदार भर का पसंघा अदाकारी में जोड़ते रहते हैं ।
लेकिन तीसरे एपीसोड में फुर्तीली के किरदार में दिखीं केतकी कुलकर्णी का असर ही अलग है। बड़े बाबू के किरदार में विश्वनाथ चटर्जी भी शानदार रहे।
‘गुल्लक 3’ की कमजोर कड़ियां (यहां बस वाली फोटो लगाएं)
सीरीज में तमाम गड़बड़ियां उत्तर भारत के लोगों को खटकेंगी। सत्यनारायण की कथा में हवन नहीं होता है। और कथा भी अधिकतर पूर्णमासी को ही सुनी जाती है।
भोपाल की बस को रुद्रपुर की बस बनाने का किस्सा ऊपर आ ही चुका है। नेपथ्य से होने वाले वाचन के संवादों को तुकांत बनाने की कोशिश कई जगह खटकती है।
बाप की चप्पल बेटे के पैरों में आने वाला दृश्य बिना कुछ कहे अपने भाव दमदार तरीके से प्रकट करता है लेकिन इसे बाद में वॉयस ओवर में समझाने से इसका असर जाता रहता है।
कैमरा, संपादन और संगीत
तकनीकी रूप से वेब सीरीज ‘गुल्लक’ के तीसरे सीजन की टीम ने अच्छा काम किया है।
शिव प्रकाश ने कैमरे को दर्शकों के नजरिये का माध्यम बनाने में कामयाबी पाई है तो गौरव गोपाल झा का निर्देशन कथ्य के हिसाब से बिल्कुल सटीक है।
वह कहानी की गति चुस्त रखते हैं और स्लो मोशन वाले दृश्यों में भी प्रभाव बनाए रखते हैं। सीरीज के संगीत के लिए अनुराग सैकिया की तारीफ अलग से बनती है।
उनके संगीत से सीरीज का कलेवर इसके संवादों में झलकती उत्तर भारतीय संस्कृति और निखरता है। सोनी लिव की ये सीरीज बिंच वॉच के लिए बिल्कुल परफेक्ट है।