Maihar Mata Temple: मध्य प्रदेश में मां शारदा का मैहर स्थित शारदा देवी मंदिर 52 शक्तिपीठों में एक है। कहा जाता है कि यहां मां जगदंबा के सती रूप का हार और कंठ गिरा था।
मां को माई भी कहते हैं इसलिए माई का हार गिरने के कारण पहले इस शहर को ‘माई हार’ और ‘मइहर’ कहा गया। इन्हीं नामों में बदलाव होते-होते इस शहर का नाम ‘मैहर’ पड़ गया।
यही नहीं, मां सती का कंठ गिरने के कारण यह विद्या की देवी मां शारदा कहलाईं।
मां शारदा के पुजारी पंडित सुमित पांडेय ने ‘द हिन्द मीडिया’ को बताया कि पुराणों के अनुसार राजा दक्ष की इच्छा के विरुद्ध उनकी बेटी ने भगवान शंकर से विवाह कर लिया था।
राजा ने यज्ञ किया था लेकिन पुत्री सती और दामाद भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। इससे नाराज सती हवन कुंड में कूद गईं।
भगवान शिव उनका शरीर लेकर तांडव करने लगे थे। इसपर मां सती के शरीर पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाया था। इससे शरीर के 52 टुकड़े हुए थे।
ये टुकड़े जहां भी गिरे उन्हें शक्तिपीठ कहा गया। इनमें से मां का कंठ और हार मैहर में गिरा था। इसलिए हार के कारण मैहर और कंठ के कारण सरस्वती रूपा मां शारदा कहलाईं।
पुजारी सुमित ने बताया कि यहां हमेशा ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि में मां के दरबार में माथा टेकने का खास महत्व है।
Maihar Mata Temple पुजारी से पहले कौन कर जाता है पूजा?
कहा जाता है कि महोबा के वीर आल्हा और ऊदल सबसे पहले त्रिकूट पर्वत की चोटी पर विराजी मां शारदा की पूजा कर जाते हैं।
Maihar Mata Temple पूर्व प्रधान पुजारी स्वर्गीय देवी प्रसाद पांडेय ने तो कई बार दावा किया था कि सुबह के समय पट खुलने से पहले ही माई की ड्योढ़ी में फूल चढ़े मिले। हालांकि वर्तमान पुजारी ने कहा कि कई बार ऐसा लगता है कि रात में कुछ हुआ हो। उसमें कुछ बदला बदला नजर आता है।
जनश्रुतियां के अनुसार 12 वीं सदी में महोबा के आल्हा और ऊदल मां शारदा के परम भक्त हुए थे। आल्हा ने 12 साल तक तपस्या की थी।
इस दौरान अपना शीश भी मां के चरणों में चढ़ाया था। इस बात से प्रसन्न होकर मां ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया था।
एक कहानी ऐसी भी
एक कहानी यह भी प्रचलन में है कि एक ग्वाले को माई ने पहले दर्शन दिए थे। 200-250 साल पहले की बात है, तब के राजा दुर्जन सिंह जूदेव को ग्वाले ने आप बीती सुनाई थी।
कहते हैं Maihar Mata Temple राजा दुर्जन सिंह ने मूर्ति स्थापना कर पूजा पाठ कर भंडारा किया था। प्रचलन में जो कहानी है उसके अनुसार एक ग्वाला जिसका नाम दामोदर था। वह रोजाना त्रिकूट पर्वत के आसपास गाय चराने जाता था।
कुछ दिनों बाद एक सुंदर सी गाय आकर उसके झुंड में शामिल हो गई। कहा जाता है एक दिन वह सुंदर गाय पर्वत के ऊपर की ओर चली जाती है। ग्वाला भी उसके पीछे-पीछे पर्वत में चढ़ जाता है।
वह गाय एक झोपड़ी में घुस जाती है। वहां से एक वृद्ध औरत निकलती है। वह बूढ़ी औरत उसे आशीर्वाद देकर गायब हो जाती है। इसके बाद ग्वाले ने यह बात तब के राजा को बताई थी।
इस बार ज्यादा भीड़ की उम्मीद
मां शारदा का धाम चैत्र नवरात्रि के स्वागत के लिए तैयार है। कोरोना संक्रमण के प्रोटोकॉल की छूट के बाद इस बार श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ आने की उम्मीद की जा रही है।
इसे देखते हुए व्यवस्थाओं को लेकर संजीदगी बरती जा रही है। मैहर तहसीलदार मानवेन्द्र सिंह ने बताया कि उम्मीद की जा रही है कि इस बार श्रद्धालु ज्यादा संख्या में आएंगे, इसलिए व्यवस्था दुरुस्त की जा रही है।
गर्मी से बचने के लिए टेंट और पंखों की व्यवस्था जगह-जगह पर की गई है। साथ ही 1000 पुलिस बल की अतिरिक्त व्यवस्था भी की गई है।
पहाड़ी में सांप हैं इसलिए सपेरों का विशेष इंतजाम किया है। इस दौरान मंदिर के आसपास आठ सपेरे भी तैनात रहेंगे।