Share Market Tips : मिड और स्मॉल कैप शेयर क्या बन चुके हैं! समझिए बाजार की चाल

Stock Market Tips : सेंसेक्स लगातार 11 सत्र से फायदे में रहा है। निफ्टी-50 भी 20 हजार के आंकड़े को पार कर गया है। साल 2002 में यह सिर्फ 920 अंक था। सेंसेक्स में टॉप 30, जबकि निफ्टी-50 में टॉप 50 कंपनियां हैं।

नई दिल्ली : हाल में भारतीय शेयर बाजार के इंडेक्स निफ्टी-50 ने 20 हजार के आंकड़े को पार कर लिया। दूसरे इंडेक्स सेंसेक्स ने लगातार 11 सेशन लाभ में रहने का कमाल कर दिखाया। यह 2007 के बाद लाभ में रहने की सबसे लंबी अवधि है। भारतीय शेयर बाजार ने पिछले दो दशक से जब भी नित नए माइलस्टोन छुए, यही सवाल उठा कि इससे ज्यादा और क्या होगा।

लेकिन हर 5-10 साल बाद पलटकर देखें तो उपलब्धि छोटी होती जाती है। आज निफ्टी 20 हजार के पार है, 2002 में यह सिर्फ 920 अंक था। मशहूर निवेशक राकेश झुनझुनवाला भी कहते थे कि असली बुल मार्केट अभी आगे आएगा। यानी भारतीय शेयर बाजार किसी खास समय में ऊपर हो या नीचे, वह इसके भविष्य के प्रति हमेशा उम्मीदों से भरे रहते थे।

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Share Market Tips : मिड और स्मॉल कैप शेयर क्या बन चुके हैं! समझिए बाजार की चाल

बड़ा नहीं तो बेहतर नहीं

हाल के दिनों में मिडकैप और स्मॉलकैप के शेयरों का उतार-चढ़ाव बड़ी चर्चा में रहा। मिडकैप यानी बाजार पूंजी के लिहाज से मझोली कंपनियां, जबकि स्मॉल कैप का मतलब है छोटी कंपनियां। स्मॉल कैप कंपनियों की बाजार पूंजी 5000 करोड़ रुपये तक होती है, जबकि मिडकैप की बाजार पूंजी 5000 से 20000 करोड़ के बीच होती है। इनके शेयरों के दाम हाल में इतनी तेजी से चढ़े कि बाजार में शक पैदा हो गया। कहा जाने लगा कि एक बुलबुला बन चुका है, जो फटने ही वाला है।

एक फंड हाउस ने इनके लिए अपनी सिफारिश ही बंद कर दी। इसके तुरंत बाद मिडकैप और स्मॉल कैप शेयरों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई। एक ही दिन में मिडकैप इंडेक्स करीब तीन पर्सेंट, जबकि स्मॉल कैप इंडेक्स करीब चार पर्सेंट गिर गया।बताया गया कि निवेशकों को साढ़े पांच लाख करोड़ का नुकसान हो गया।

इसके बाद सवाल ये उठ रहा है कि इन शेयरों का आगे क्या होगा। आम लोगों को मिड और स्मॉल कैप शेयरों में पैसा लगाना चाहिए या नहीं?

शेयरों की कितनी कैटिगरी

देखा गया है कि शेयर मार्केट में लार्जकैप कंपनियों का निवेश थोड़े कम हिचकोलों से भरा होता है, लेकिन मिडकैप और स्मॉल कैप स्टॉक्स के भाव में तेज उतार-चढ़ाव होता है। सेंसेक्स में टॉप 30, जबकि निफ्टी-50 में टॉप 50 कंपनियां हैं।

बाजार पूंजी के लिहाज से जो 100 बड़ी कंपनियां हैं, उन्हें लार्ज कैप कहा जाता है। इनके बाद मिडकैप और स्मॉलकैप का नंबर आता है। निफ्टी और सेंसेक्स के लंबे सफर में मोटे तौर पर दो बार बड़ी गिरावट आई। एक 2008 में, दूसरी 2020 में। इन गिरावटों से भी रिकवरी बहुत जल्दी हो गई।

जिन लोगों ने निफ्टी या सेंसेक्स में साल 2000 से निवेश कर अब तक टिकने का फैसला किया है, वो आज अच्छे रिटर्न के हकदार होंगे। यही वजह है कि फाइनैंस के एक्सपर्ट आम लोगों को मोटे तौर पर लार्जकैप स्टॉक्स में ही निवेश की सलाह देते हैं।

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रिस्क क्यों भाता है?

ज्यादा रिटर्न की आस में निवेशक अक्सर मिडकैप और स्मॉलकैप शेयर भी चुन लेते हैं। इस कैटिगरी के निवेशकों से लार्ज कैप के मुकाबले ज्यादा धैर्य रखने की अपेक्षा की जाती है। कम से कम 10 साल।

लेकिन आज भी पिछले एक साल के रिटर्न के आधार पर इन शेयरों में निवेश कर दिया जाता है। फिर किसी बड़ी गिरावट के बाद बरस-दो बरस में ही निवेश तोड़ दिया जाता है। अभी इन शेयरों में पिछले छह महीने के दौरान जो रैली देखी गई, उस वक्त इनमें निवेश बड़ी तेजी से बढ़ रहा था। इसकी कई वजहें थीं।

तेजी की क्या वजह?

ऑनलाइन माध्यमों के जरिये निवेश करना आसान हो गया है। हाल के समय में रिकॉर्ड डिमैट खाते खुले। सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बड़ी रकम खर्च करने का फैसला किया, जिससे मझोली और छोटी कंपनियों का मुनाफा तेजी से बढ़ रहा था। इस कैटिगरी की कई कंपनियों ने पहली बार शेयर बाजार में घुसने का फैसला किया। इनके शुरुआती ऑफर यानी आईपीओ ने बाजार में हलचल मचा दी।

कई लोग ये मानते हैं कि बड़े चुनावों से पहले शेयर बाजार में अक्सर तेजी देखी जाती है। लेकिन अब गिरावट की शुरुआत देखकर निवेशक सवाल पूछ रहे हैं कि मिड और स्मॉल कैप में बने रहना चाहिए या नहीं।

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आगे क्या होगा इनका?

बाजार का सच यही है कि कोई भी नहीं बता सकता कि किसी कंपनी के शेयर का भाव क्या होने वाला है। हो सकता है कि मिड और स्मॉल कैप शेयरों में अभी और दम बाकी हो। लेकिन ऊंचाइयों को छूने से पहले गिरावट के लिए भी तैयार रहना होगा।

ये शेयर तेजी से मुनाफा और नुकसान देने के लिए जाने जाते हैं। निवेशक दो तरह के हो सकते हैं। एक जो म्यूचुअल फंड के जरिये नियमित निवेश में भरोसा रखते हैं। दूसरी तरह के निवेश ब्रोकरों के जरिये शेयरों की तेजी से खरीद बिक्री करते रहते हैं यानी ट्रेडिंग करते हैं। समझा जाता है कि ये ज्यादा रिस्क उठाते हैं।

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