शुक्रवार को माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी Sankashti Chaturthi का व्रत किया जाएगा। इस व्रत से पूरे साल की सभी चतुर्थी व्रतों का फल मिलता है। इसे खास इसलिए माना जाता है क्योंकि पद्म पुराण के मुताबिक इस व्रत के बारे में भगवान गणेश ने ही मां पार्वती को बताया था। वैसे तो हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी गणेश चतुर्थी कहलाती है। लेकिन माघ मास की चतुर्थी तिल संकटा चौथ कहलाती है।
तिल का इस्तेमाल होने से तिल चतुर्थी नाम
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सकट चतुर्थी Sankashti Chaturthi पर महिलाएं सुख-सौभाग्य, संतान की समृद्धि और परिवार के कल्याण की इच्छा से ये व्रत रखती हैं। इस व्रत में पानी में तिल डालकर नहाया जाता है। फलाहार में तिल का इस्तेमाल किया जाता है।
साथ ही गणेशजी की पूजा भी तिल से की जाती है और उन्हें तिल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। इसलिए इसे तिलकुट चतुर्थी, तिल चौथ या सकट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भालचंद्र रूप में भगवान गणेश की पूजा करने का विधान है।
सेहत के लिए फायदेमंद है ये व्रत
माघ महीने की तिलकुट चतुर्थी Sankashti Chaturthi पर व्रत करने की परंपरा अच्छी सेहत को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। माघ महीने की शुरुआत होते ही मौसम में बदलाव होने लगते हैं। इस चतुर्थी तिथि पर व्रत करने और तिल के इस्तेमाल से शरीर में जरूरी पौष्टिक चीजों की कमी दूर हो जाती है। साथ ही इससे डाइजेशन सिस्टम इंप्रूव होने में मदद मिलती है।
संकष्टी चतुर्थी Sankashti Chaturthi : इस व्रत से मिलता है साल की सभी चतुर्थी व्रतों का फल, सेहत के लिए भी खास है ये तिल
पद्म पुराण: गणेशजी को मिला वरदान
पद्म पुराण के मुताबिक इस तिथि पर कार्तिकेय के साथ पृथ्वी की परिक्रमा लगाने की प्रतिस्पर्धा में भगवान गणेश ने पृथ्वी की बजाय भगवान शिव-पार्वती की सात बार परिक्रमा की थी। तब शिवजी ने प्रसन्न होकर देवताओं में प्रमुख मानते हुए उनको प्रथम पूजा का अधिकार दिया था।
दूर होते हैं ग्रह दोष
सकट चौथ पर भगवान गणेश की पूजा करने से ग्रहों का अशुभ प्रभाव कम होता है। गणेश जी की पूजा से बुध, राहु और केतु से होने वाले कुंडली के दोष दूर होते हैं। गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान के देवता माना गया है।
इसलिए इस दिन गणेशजी की पूजा और व्रत करने से संतान की शिक्षा में आ रही रूकावटें दूर होती हैं। साथ ही सेहत अच्छी रहती है और समृद्धि भी बढ़ती है।
माघ महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी, 21 जनवरी, शुक्रवार को है। इस दिन गणेश चौथ, तिलकुटा चौथ या संकष्टी चौथ Sankashti Chaturthi का व्रत किया जाता है। गणेशजी की साधना-अराधना के जरिये ये व्रत खासतौर से सौभाग्य और संतान की लंबी उम्र की कामना से किया जाता है।
महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संकटों को दूर करने के लिए यह व्रत रखती हैं। महिलाएं चौथ माता और भगवान गणपति का पूजन करेंगी और कथा सुनेंगी। घर की बुजुर्गों से आशीर्वाद लेंगी। इस चौथ को संकष्टी चौथ भी कहा गया है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
संकष्टी चौथ Sankashti Chaturthi का व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात ही पूरा होता है, शुक्रवार को रात करीब 08:40 पर चंद्रोदय के बाद चांद को अर्घ्य देकर और तिलकुटे का भोग लगाने के बाद महिलाएं निर्जला व्रत खोलेंगी।
2 शुभ योग होने से और भी बढ़ गया है महत्व
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र ने बताया कि इस बार माघ महीने की संकष्टी चतुर्थी शुक्रवार को है। इस दिन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में चंद्रमा होने से सिद्धि योग बन रहा है। साथ ही ग्रहों की शुभ स्थिति से सौभाग्य नाम का शुभ योग भी बनेगा।
लिहाजा इस व्रत का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, चंद्रमा शुक्रवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में रहेगा जो कि शुक्र का नक्षत्र है। इस कारण संकष्टी चौथ पर शुक्रवार और शुक्र के नक्षत्र का होना सौभाग्य बढ़ाने वाला माना जाता है। इस दिन महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि के साथ-साथ अपने बच्चों की खुशहाली की कामना करतीं हैं।
इस दिन क्या करें
तिलकुट चतुर्थी Sankashti Chaturthi के दिन महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
दिनभर बिना पानी के रहना चाहिए अगर ये संभव ना हो तो पानी पी कर बिना अन्न खाए व्रत करें।
शाम को भगवान गणेश और चतुर्थी देवी की पूजा करें।
रात में चंद्रमा का दर्शन कर के अर्घ्य दें।
परिवार के बड़े लोगों को प्रणाम करें और व्रत खोलें।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शुक्रवार और तिल चतुर्थी के योग में गणेश जी के साथ ही महालक्ष्मी और शुक्र ग्रह की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। चतुर्थी Sankashti Chaturthi की सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। इसके लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए।
सूर्य को अर्घ्य देते समय ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद घर के मंदिर में गणेश जी के सामने पूजा और व्रत करने का संकल्प लें। गणेश प्रतिमा पर जल चढ़ाएं। जनेऊ, हार-फूल, वस्त्र आदि अर्पित करें। दूर्वा अर्पित करें। भोग लगाएं।
धूप-दीप जलाएं। आरती करें। पूजा के अंत में जानी-अनजानी भूल के लिए क्षमा मांगे। पूजा के बाद अन्य भक्तों को प्रसाद वितरीत करें और खुद भी ग्रहण करें। पूजा में गणेश जी मंत्रों का जाप करें।
गणेश पूजा के बाद देवी लक्ष्मी की भी पूजा करें। दक्षिणावर्ती शंख से देवी का अभिषेक करें। इसके लिए केसर मिश्रित दूध का उपयोग करें। दूध से अभिषेक करने के बाद जल से स्नान कराएं। वस्त्र अर्पित करें।
हार-फूल चढ़ाएं। पूजन सामग्री अर्पित करें। तुलसी के साथ भोग लगाएं। धूप-दीप जलाकर आरती करें। देवी लक्ष्मी के मंत्र ऊँ महालक्ष्मयै नम: मंत्र का जाप करें।
शुक्रवार को शुक्र ग्रह के लिए दूध का दान करें। शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं और धूप-दीप जलाकर आरती करें।
जो लोग इस दिन व्रत करते हैं, उन्हें दिनभर निराहार रहना चाहिए यानी अन्न न खाएं। फलाहार कर सकते हैं, दूध का सेवन कर सकते हैं। शाम को चंद्र उदय के बाद चंद्र को अर्घ्य दें, गणेश पूजा करें। इस तरह चतुर्थी Sankashti Chaturthi का व्रत पूरा होता है।